प्रार्थना

हे हरि, तव चरणकमल में
करूं प्रार्थना एक,
सेवामय हो जीवन
करुणामय हो अंतर नेक!
पीड़ा देख संसार की दौड़ूं,
हरूं कष्ट दीन-हीन के,
दें बल, बुद्धि, भावों को,
नहीं सेवा हो गिन गिन के!!